बुधवार, 16 सितंबर 2009

अजी उत्तर प्रदेश नहीं अस्थिर प्रदेश कहिये


देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश के गाँव नगरो में बैठने वाली चौपालों पर भले ही आम जीवन के दुःख सुख की चर्चा कम रस के साथ हो लेकिन राजनीतिक चर्चा बड़ी गहमागहमी के साथ होती हैं। कभी-कभी यह चर्चा दो या दो से ज्यादा पार्टियों और नेताओ की अच्छाई और बुराई पर होते होते आपसी खेमेबाजी में तब्दील हो जाती हैं. मामला इतना गंभीर हो जाता हैं की कई बार हिंसा तक हो जाती हैं.लेकिन इस बारे में अनुमान लगाना काफी मुश्किल हैं की क्या राजनीतिक रूप से जागरूक रहने वाले लोग इस बात पर चर्चा करतें होंगे की हमारा प्रदेश आज़ादी के बाद से राजनीतिक रूप से काफी अस्थिर रहा हैं?

वर्ष २००७ के विधानसभा चुनाव परिणाम को देखकर लगता है, शायद लोगो ने इस बात पर चर्चा जरूर की होगी तभी तो प्रदेश की जनता ने ऐसा जनादेश दिया जिससे लगने लगा है की मायावती गोविन्द बल्लभ पन्त और सम्पूर्नानादा के बाद अपना कार्यकाल पूरा कर लेंगी। इससे पहले भी वह तीन बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं लेकिन कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायीं.

आज़ादी के बाद से प्रदेश में १९ व्यक्तियों ने मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला हैं जिसमें से अब तक सिर्फ गोविन्द बल्लभ पन्त और सम्पूर्णानन्द ही अपना कार्यकाल पूरा कर पायें हैं. ऐसा तब हुआ हैं जब कई बार राजनितिक दलों को पूर्ण बहुमत मिला हैं. किसी मुख्यमंत्री को बीच में हटाने का कारनामा सबसे ज्यादा कांग्रेस पार्टी ने किया हैं. उसने ९ बार बीच में ही मुख्यमंत्री बदल दिया. इस निति को अपनाने में भारतीय जनता पार्टी और जनता पार्टी भी पीछें नही रहीं। वर्ष १९९९ से २००२ के बीच में पार्टी ने ३ मुख्यमंत्रियों को बदल दिया। इस अदला बदली का ही नतीजा हैं की नारायण दत्त तिवारी, चंद्रभानु गुप्ता और मायावती को चार बार मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। मुलायम सिंह भी अब तक तीन बार गद्दी संभल चुके हैं और अभी भी नारायण दत्त तिवारी, मायावती और चंद्रभानु गुप्ता की कतार में शामिल होने को बेताब हैं। प्रदेश की जनता जरूर यही चाहती होगी की मायावती अपना यह कार्यकाल जरूर पूरा करें ताकि १९८९ से जारी राजनितिक अस्थिरता खत्म हो सके.

रविवार, 6 सितंबर 2009

लो खिंचवा ली फोटो !

लो ब्लॉग की दुनिया में एक और नमूना टपक पड़ा. वैसे मेरा यह ब्लॉग काफी समय पहले आ जाता यदि मैं आलस छोड़ अपनी एक फोटो खिंचा लेता. कमबख्त एक अदद फोटो ने सारा काम बिगाड़ कर रखा था. वो तो भला हो गाजियाबाद के एक फोटो पत्रकार का जिसने जबरदस्ती कर फोटो खिंच डाली और यह ब्लॉग बन सका.वैसे फोटो की बात चल रही हैं तो एक बात मुझे अचानक याद आ गयी. हुआ यह की कुछ दिन पहले शादी के लियें किसी ने मेरी फोटो मांगी थी लेकिन सारी एल्बम और कंप्यूटर के एक-एक फोल्डर को देखने के बाद भी मेरी कोई खास फोटो हाथ न लग सकी. इस पुरे मामले पर मेरे पिता जी को गुस्सा भी आ रहा था, लेकिन वो मेरे पर गुस्सा करने के बजाएं मेरे भाई पर गुस्सा करने लगे. उन्होंने कहा क्या तुम भैया की कोई फोटो नहीं खिंच सकतें. मेरे भाई का जवाब था की कोई यदि फोटो नहीं खिंचवाता तो मेरा कसूर क्या हैं.वैसे फोटो का महत्व मुझें तब समझ में आया जब में गाजियाबाद में चेतन जी के साथ एक अख़बार में काम कर रहा था. वो जिस तरह फोटो का इस्तेमाल करतें थें उसका में कायल हूँ. पेज पर क्या गजब की फोटो लगवातें थें.