मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

Have अ लुक !

एक लुक के पीछे लोगों की दीवानगी किस कदर हावी रहती है, यह शायद ही किसी को बतलाने की जरूरत है। यह लुक का ही खेल है की मेरा पड़ोसी आए दिन यह ताने मरने से पीछें नही रहता की आपके भवन निर्माण की वजह से मेरे मकान की लुक ख़राब हो रही है। बेचारा इस लुक के चक्कर में इतना बेचैन है की उसे मेरी दिक्कतें दिखाई ही नहीं देतीं । खैर वो भी बेचारा क्या करे जब हमारे फ़िल्म स्टार से लेकर तमाम हस्तियां इस लुक के चक्कर में घनचक्कर हुए जा रही हैं तो वो ऐसा करके कौन सा गुनाह कर रहा है।आज कल लुक कांसिओउस होने का जमाना इसलिए भी है क्योंकि जो चीज दिखती है वही बिकती भी है। इसी का नतीजा है की लड़की वाले आजकल शादियों के लिए ऐसी तस्वीरें भेजने लगे हैं, जिसके ऊपर कैमरे ने कम और कंप्यूटर ने ज्यादा मेहनत की होती है। लड़की का कद कम न दिखे इसके साडी को इस तरह से बांधा जा रहा है की उसकी लम्बाई बिल्कूल छिप जाये। लुक की यह भूख हमारे हमारे फिल्म स्टार्स में ज्यादा देखी जा सकता है जो तरह-तरह के लुक के लिए हमेशा परेशान रहते हैं। उदहारण के तौर पर आप आमिर खान जैसे परफेक्ट ऐक्टर को फिल्म में उनके द्वारा निभाए गए किरदार के रूप में तब तक देख सकतें हैं जब तक की फिल्म पर्दे पर आ नहीं जाती। यह लुक कोन्किऔस्नेस्स का ही नतीजा है की अमिताभ बच्चन जैसे कलाकार को फ्रेंच कट, शाहरुख़ खान को सिक्स पैक एब्स और शिल्पा शेट्टी को नाक की प्लास्टिक सर्जरी करवानी पड़ी। इस तरह के तमाम उदहारण मैं दे सकता हूँ लेकिन हो सकता है की लम्बी फेहरिस्त की वजह से मेरे ब्लॉग की लुक ख़राब हो जाये। इसलिए मैं भी लुक कोन्स्किऔस होने के कारण ऐसा नहीं कर रहा। लुक चाहे मकान का हो या चेहरे का सभी का ख्याल इसलिए रखना पड़ता है क्योंकि खुली अर्थव्यवस्था में सभी बिकाऊ हैं। सभी का अपना रेट है, इस रेट ने पेट के साइज़ को इतना बढा दिया है कि अपना माल बेचने के लिए लोग दुसरो का नुकसान देखना भूल गए हैं।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

दुःख होगा यदि सिर्फ़ खाना खाकर और रात बिताकर चलते बने

रोज की तरह जब मैं शनिवार को इन्टरनेट पर अपने गृह जनपद बलिया की खबरें पढ़ रहा था, तो एक खबर ने मेरा सबसे ज्यादा ध्यान खींचा , खबर थी की कांग्रेसी नेता गाँधी जी की जयंती पर दलितों के घर ठहरे और उनके यहाँ भोजन भी किया। जब मैं अपने ऑफिस से Night शिफ्ट ख़तम करके घर पहुंचा तो गाजियाबाद के अखबारों में भी यही खबर थी की कांग्रेसियो ने दलित बस्ती में रात बितायी और खाना खाया। मैं रोजाना इन्टरनेट पर बलिया की खबरें देख लेता हूँ, ऐसा इसलिए करता हूँ की पता तो चले की मेरी जन्मभूमि पर आखिर क्या हलचल चल रही है, जन्म से ही दूर रहने के बावजूद भी पता नहीं क्यों इस जिले का मोह मेरे मन से अभी तक नहीं निकला। दूसरी जगह का जो मैने जिक्र किया वो ऐसी जगह है जिसने मुझे रहने के लिए घर, पढ़ने के लिए स्कूल और कुछ समय तक रोजीरोटी के लिए जगह दी। इसलिये मैं इस जिले के प्रति कृतज्ञ हूँ। यहाँ की ख़बरों में भी मेरी काफी रुचि रहती है। अपने दो चहेते जिलो मे एक सी खबरें देखकर मुझे लगा की इस पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर व्यक्त करनी चाहिए, क्योंकि मसला दलितों से जुड़ा हुआ है और वो भी उस प्रदेश से जुड़ा हुआ है जहाँ की मुखिया दलित है। वैसे यह खबर सिर्फ दो जिलो तक सिमित नहीं थी। टीवी चैनल्स और अखबारों में प्रदेश के बड़े कांग्रेसी नेताओ को दलितों के घर रूकते हुए और खाना खाते हुए बड़े ही आकर्षक ढंग से दिखाया जा रहा था। यह सब देखने पर दिमाग ने जोर डाला और सोचने पर मजबूर कर दिया की प्रदेश के कांग्रेसी नेताओ को आखिर क्या हो गया जो अचानक ही दलित प्रेमी हो गए। पहले तो इस तरह का आडम्बर नहीं किया जाता था, इस आडम्बर में कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी से लेकर तमाम बड़े नेताओ ने भाग लिया। राहुल के दलित के घर रुकने को मीडिया ने बड़ा इवेंट साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं उन्हें दलित प्रेमी भी बताया गया। मेरा बस छोटा सा सवाल है की दलितों को उनके अधिकार दिलाने में जो काम आरक्षण, दलित मुख्यमंत्री और तमाम तरह के लुभावन वायदे नहीं कर सके क्या उस अधिकार को कांग्रेसी भोजन करके और रात घर पर बिताकर दिला सकते है? अगर इसका जवाब हाँ है तो यह काम पहले क्यों नहीं किया गया? क्या कांग्रेसियो को वाकई दलितों से हमदर्दी है या यह सिर्फ दिखावा मात्र है? दूर से देखने पर जो खेल नजर आता है वो यह है की सत्ता में आने के पहले दलितों ने मायावती से जो उम्मीदें लगायी थी वो सिर्फ मृगतृष्णा साबित होकर रह गयीं। कांग्रेसी दलितों के इसी दर्द को भुनाने के लिए यह सब कर रहे हैं। वो यह लालीपॉप देने में जुटे हैं की मायावती ने दलितों को धोखा दिया तो क्या हुआ कांग्रेस उनके लियें सहारा बनेगी। यह सारी रणनीति २०१२ में होने वाले विधानसभा चुनावो के लिए बनायी जा रही है। कांग्रेसी प्रदेश में लोकसभा चुनावो में मिली सफलता से काफी उत्साहित हैं। दलितों का कौन कितना बड़ा हितेषी है इसकी जंग हमेशा राजनितिक दलों में होती रहती है, लेकिन मुझे आजतक यह समझ नहीं आया की आखिर यह जंग मेरे गाँव सीताकुंड (बलिया से १४ किलोमीटर दूर) में रहने वाले दलितों की तकदीर क्यों नही बदल सकी? वो आज भी वैसे हैं जैसे की दस साल पहले थे, मैं आज भी देखता हूँ की उनकी स्थिति दयनीय बनी हुयी है। वो कम संसाधनों की वजह से अपने बच्चो को स्कूल पढने नहीं भेजते। उन्हें यह भी नहीं पता की आरक्षण क्या चीज़ होती है और उसके फायदे क्या है? पूछने पर यह तो बता देते हैं की प्रदेश की मुखिया दलित है लेकिन यह नहीं बता पाते की उनकी मुखिया ने उन्हें दिया क्या है। मेरे ख्याल से कांग्रेसी नेताओ को मेरे गाँव जाकर इनके घर भी ठहरना चाहिए था आखिर उन्हें भी तो पता चलता की आखिर दलितों की सच्चाई क्या है। लेकिन मुझे इस बात का दुःख होता यदि राहुल गाँधी, रीता बहुगुणा, जितिन प्रसाद, श्रीप्रकाश जयसवाल जैसे नेता यहाँ आकर सिर्फ खाना खाकर और रात बिताकर से चलते बनते।

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

आज 2 अक्टूबर है


अभी जब रात के 1 बजकर 3 मीनट हुए हैं, मुझे अचानक याद आया की 1 अक्टूबर बीत चुकी है और आज 2 तारीख हो गयी है। अचानक मुझे यह भी याद आया की आज किसी ऐसे व्यक्ति का जन्मदिन है, जिसे हम लोग अपनी इतिहास की किताबो में पढ़ते थें। हमें पढाया जाता था की भारत को ऐसे व्यक्ति ने आजाद कराया जो कभी झूट नहीं बोलता था। जिसने अपने देश को सत्य और अहिंसा के बल पर ब्रिटिश हकुमत से मुक्त कराया। जो साधारण होतें हुए भी असाधारण था। लोग उसे महात्मा कहते थे और उसके पीछे लोग ऐसे मतवाले थे की उसे राष्ट्र-पिता और बापू भी कह कर संबोधित करते थे। इतिहास की किताबो में महात्मा गाँधी लिखा हुआ मिलता था। इसके साथ यह भी लिखा हुआ मिलता था की उनका बचपन का नाम मोहन दास करम चंद गाँधी था। मेरे ख्याल से इतनी जानकारी काफी है जो यह साबित करती है की तमाम व्यस्तताओ के बावजूद भी भी मैं बापू को नहीं भुला हूँ। हो सकता है की आज के बाद बापू मुझे फिर अगली जयंती पर ही याद आयें ठीक हमारे उन नेताओ की तरह जो 2 अक्टूबर के दिन उनकी समाधी पर पुष्प अर्पित करने के बाद करते हैं।
अभी जब मैं यह ब्लॉग लिख रहा हूँ तो मन में एक स्फूर्ति सी है क्योंकि मन में एक ऐसे व्यक्ति का ख्याल अचानक आ गया जिसे एक दो किताबो में ख़तम नहीं किया जा सकता। गाँधी को समझने के लिए पूरा जीवन कम है। कुछ बातें और याद आ रही हैं इस दिन टीवी पर गाँधी नाम की एक फिल्म भी दिखाई जाती है जिसे रिचर्ड एतेंब्रौग ने बनाया था। पूरी फिल्म देखने के बाद यही लगता था की शरीर पर धोती लपेटे और हाथ में लाठी लिए इस व्यक्ति में ऐसा क्या था जो सभी इसके दीवाने थें।
आज जब सुबह होगी तो फिर से सारे न्यूज़ चैनल गाँधी को याद करेंगे और न जाने TRP बटोरने वाले कौन से प्रोग्राम चलाएंगे या फिर चलाएंगे भी की नहीं क्योंकि गाँधी कोई राखी सावंत, राहुल महाजन, शाहरुख़ खान, धोनी, लालू प्रसाद यादव तो हैं नहीं जो TRP की गंगा बहा दें। इन सब के बीच में शायद गाँधी फिल्म दूरदर्शन पर जरूर दिखयी जायेगी जो नयी पीढी को यह बतलाने में काफी मदद करेगी की कोई साबरमती का संत भी इस देश के गुजरात में पैदा हुआ था। याद दिला दूं की यह वही गुजरात है जहाँ अभी नरेन्द्र मोदी का शासन है, और जिन पर गुजरात में दंगे फैलाने का आरोप हैं। खैर इन सब बातों में क्या रखा हैं। बस इतना याद रखना जरूरी है की आज गाँधी जयंती है और आज जितना मन करे उतना गाँधी जी को याद करे. कल भूल जाने पर कोई कसूर थोड़े ही न होगा क्योंकि ऐसा तो हम भारतीय दशको से करतें आ रहे है।