शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

दुःख होगा यदि सिर्फ़ खाना खाकर और रात बिताकर चलते बने

रोज की तरह जब मैं शनिवार को इन्टरनेट पर अपने गृह जनपद बलिया की खबरें पढ़ रहा था, तो एक खबर ने मेरा सबसे ज्यादा ध्यान खींचा , खबर थी की कांग्रेसी नेता गाँधी जी की जयंती पर दलितों के घर ठहरे और उनके यहाँ भोजन भी किया। जब मैं अपने ऑफिस से Night शिफ्ट ख़तम करके घर पहुंचा तो गाजियाबाद के अखबारों में भी यही खबर थी की कांग्रेसियो ने दलित बस्ती में रात बितायी और खाना खाया। मैं रोजाना इन्टरनेट पर बलिया की खबरें देख लेता हूँ, ऐसा इसलिए करता हूँ की पता तो चले की मेरी जन्मभूमि पर आखिर क्या हलचल चल रही है, जन्म से ही दूर रहने के बावजूद भी पता नहीं क्यों इस जिले का मोह मेरे मन से अभी तक नहीं निकला। दूसरी जगह का जो मैने जिक्र किया वो ऐसी जगह है जिसने मुझे रहने के लिए घर, पढ़ने के लिए स्कूल और कुछ समय तक रोजीरोटी के लिए जगह दी। इसलिये मैं इस जिले के प्रति कृतज्ञ हूँ। यहाँ की ख़बरों में भी मेरी काफी रुचि रहती है। अपने दो चहेते जिलो मे एक सी खबरें देखकर मुझे लगा की इस पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर व्यक्त करनी चाहिए, क्योंकि मसला दलितों से जुड़ा हुआ है और वो भी उस प्रदेश से जुड़ा हुआ है जहाँ की मुखिया दलित है। वैसे यह खबर सिर्फ दो जिलो तक सिमित नहीं थी। टीवी चैनल्स और अखबारों में प्रदेश के बड़े कांग्रेसी नेताओ को दलितों के घर रूकते हुए और खाना खाते हुए बड़े ही आकर्षक ढंग से दिखाया जा रहा था। यह सब देखने पर दिमाग ने जोर डाला और सोचने पर मजबूर कर दिया की प्रदेश के कांग्रेसी नेताओ को आखिर क्या हो गया जो अचानक ही दलित प्रेमी हो गए। पहले तो इस तरह का आडम्बर नहीं किया जाता था, इस आडम्बर में कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी से लेकर तमाम बड़े नेताओ ने भाग लिया। राहुल के दलित के घर रुकने को मीडिया ने बड़ा इवेंट साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं उन्हें दलित प्रेमी भी बताया गया। मेरा बस छोटा सा सवाल है की दलितों को उनके अधिकार दिलाने में जो काम आरक्षण, दलित मुख्यमंत्री और तमाम तरह के लुभावन वायदे नहीं कर सके क्या उस अधिकार को कांग्रेसी भोजन करके और रात घर पर बिताकर दिला सकते है? अगर इसका जवाब हाँ है तो यह काम पहले क्यों नहीं किया गया? क्या कांग्रेसियो को वाकई दलितों से हमदर्दी है या यह सिर्फ दिखावा मात्र है? दूर से देखने पर जो खेल नजर आता है वो यह है की सत्ता में आने के पहले दलितों ने मायावती से जो उम्मीदें लगायी थी वो सिर्फ मृगतृष्णा साबित होकर रह गयीं। कांग्रेसी दलितों के इसी दर्द को भुनाने के लिए यह सब कर रहे हैं। वो यह लालीपॉप देने में जुटे हैं की मायावती ने दलितों को धोखा दिया तो क्या हुआ कांग्रेस उनके लियें सहारा बनेगी। यह सारी रणनीति २०१२ में होने वाले विधानसभा चुनावो के लिए बनायी जा रही है। कांग्रेसी प्रदेश में लोकसभा चुनावो में मिली सफलता से काफी उत्साहित हैं। दलितों का कौन कितना बड़ा हितेषी है इसकी जंग हमेशा राजनितिक दलों में होती रहती है, लेकिन मुझे आजतक यह समझ नहीं आया की आखिर यह जंग मेरे गाँव सीताकुंड (बलिया से १४ किलोमीटर दूर) में रहने वाले दलितों की तकदीर क्यों नही बदल सकी? वो आज भी वैसे हैं जैसे की दस साल पहले थे, मैं आज भी देखता हूँ की उनकी स्थिति दयनीय बनी हुयी है। वो कम संसाधनों की वजह से अपने बच्चो को स्कूल पढने नहीं भेजते। उन्हें यह भी नहीं पता की आरक्षण क्या चीज़ होती है और उसके फायदे क्या है? पूछने पर यह तो बता देते हैं की प्रदेश की मुखिया दलित है लेकिन यह नहीं बता पाते की उनकी मुखिया ने उन्हें दिया क्या है। मेरे ख्याल से कांग्रेसी नेताओ को मेरे गाँव जाकर इनके घर भी ठहरना चाहिए था आखिर उन्हें भी तो पता चलता की आखिर दलितों की सच्चाई क्या है। लेकिन मुझे इस बात का दुःख होता यदि राहुल गाँधी, रीता बहुगुणा, जितिन प्रसाद, श्रीप्रकाश जयसवाल जैसे नेता यहाँ आकर सिर्फ खाना खाकर और रात बिताकर से चलते बनते।

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