बुधवार, 4 नवंबर 2009

प्रेम, प्रेमी और माँ-बाप फैसला आप का !



हम आये दिन प्रेम और प्रेम विवाह जैसी खबरों से न्यूज़ चैनल और अखबारों के माध्यम से रूबरू होते हैं. खबरों के माध्यम से जो प्रेम कहानियाँ दिखाई जाती है, उसमे हमेशा प्रेमी जोड़े को हीरो और उनके परिजनों को विलेन दिखाया जाता है, ठीक उन तमाम हिट और फ्लॉप हिंदी फिल्मों की तरह जिसमे विलेन इतना क्रूर होता है की वह जुल्मो की हद पर कर देता है. लेकिन यहाँ तो विलेन उन्हें बनाया जाता है जिन्होंने न जाने कितनी परेशानियों से जूझते हुए अपमी औलाद को पाल पोसकर बड़ा किया होता है. प्रेम विवाह करने के बाद भले ही लड़के और लड़की को सबसे ज्यादा खुशी मिले लेकिन उन माँ बाप का क्या जो जीवन भर समाज के तानो से अपना पीछा मरने के बाद ही छुड़ा पते हैं. इन्ही माँ बाप को हम विलेन की तरह दिखाते हैं और यह साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते की ये प्यार के सबसे बड़े दुश्मन हैं. मेरा सवाल है की यह कैसे हो सकता है की जो माँ-बाप अपने बच्चो के जीवन को बनाने के लिए अपने दिन का चैन और रात की नींद खो दे वही एक दिन उनके दुश्मन कैसे बन जातें हैं? क्या उनको सिर्फ इसलिए विलेन बनाना ठीक है की वे अपने बच्चो के प्रेम-विवाह से नाखुश हैं?

हमारे समाज में सभी माँ-बाप अपने बच्चों से कुछ उम्मीदें रखतें हैं. उनकी यह भी उम्मीद होती है की उनका बेटा या बेटी एक दिन ऐसा काम करेंगे जिससे उनका सर समाज में ऊँचा होगा. लेकिन जब उनका बेटा या बेटी सारी सामाजिक मर्यादाओं को ताक पर रख कर अपनी मर्जी से शादी कर लेता है तो वही सर किसी के आगे बड़ी ही बेशर्मी के साथ खड़ा हो पता है. उनको सबसे ज्यादा डर हमारे समाज से होता है जो जीवन भर उन्हें ताने मारकर तील-तील मरने पर मजबूर कर देता है. यह स्थिति तब और ज्यादा भयानक रूप ले लेती है जब उनके लाडले या लाडली ने गैर धर्म या गैर जाती में शादी की होती है. अभी हाल में अमर उजाला के गाजियाबाद वाले पेज पर एक खबर पढ़ने को मिली जिसमे लिव इन रिलेशनशिप का मामला सामने आया. खबर बताती है की कैसे फतेहपुर की रहने वाली एक लड़की और इलाहाबाद के रहने वाले एक लडके को प्यार हो जाता है और दोनों बिना शादी किये एक साथ रहने को तैयार हो जातें हैं. बाद में स्थिति यह हुई की यहाँ पढाई करने आई लड़की प्रेग्नेंट हो गई और वह अभी भी मैनेजमेंट की अंतिम वर्ष की स्टुडेंट है. लड़का इंजीनियरिंग कर एक कंपनी में काम करने लगा हैं. दोनों शादी भी करना चाहतें हैं, इस शादी के लिए उनके माँ-बाप भी राजी हैं लेकिन वे चाहतें हैं की पहले लड़की गर्भपात करवा लें ताकि समाज के लोगों को यह बात नागवार न गुजरे. कल्पना कीजिये यदि यह शादी बिना गर्भपात कराए हो तो समाज इस चीज को किस नजरियें से देखेगा. उन माँ-बाप के लिए तो पूरा जीवन ही नर्क हो जायेगा जो इनके अभिवावक हैं. क्या तमाम रिश्ते-नातेदार उन्हें शक की नजरों से नहीं देखेंगे. हाँ एक बात और दिलचस्प है इस कहानी में लड़का और लड़की दोनों किसी मेट्रोपोलिटन शहर से नहीं आते. यानि लिव इन रिलेशनशिप की बीमारी अब उच्च आय वर्ग वाले लोगों तक सीमित नहीं रही. यह नयी पीढ़ी के जीने का नया तरीका है. जो तमाम बन्धनों को खुद से अलग कर रहा है.

मेरा बस इतना कहना है की प्रेम या प्रेम विवाह करने में कोई खराबी नहीं है लेकिन कम से कम लाडले और लडलियां को अपने घरवालों को विश्वाश में लेकर कोई कदम उठाना चाहिए. उन्हें कम से कम मानसिक रूप से इतना ताक़तवर बना देना चाहिए ताकि वे समाज की उठने वाली ऊँगली को वापस उलटी दिशा में मोड़ सकें. प्रेम में अंधे लोगों को यह भी देखना चाहिए की जिस लड़के व लड़की के के लिए वे घरबार तक छोड़ रहे है क्या उसका इतना बड़ा योगदान और त्याग है जो माँ-बाप ने उसके लिए किया है.

2 टिप्‍पणियां:

  1. आजकल ये एक चलन सा बन गया है , आपने बहुत ही तार्किक प्रश्न उठाए हैं ..लिखते रहें ।

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  2. बहुत सामयिक व विचारणीय पोस्ट लिखी है।बधाई

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