शनिवार, 21 नवंबर 2009

क्या पत्रकारिता loudspeaker हो गयी है ?

"पंकज जी राष्ट्रीय छात्र संगठन का जिला अध्यक्ष बनने पर सभी लोग मुझे बधाई दे रहे हैं, पर न जाने मेरे घर वालों को क्या हो गया है, जो यह कहकर मेरा अपमान कर रहे हैं की मैंने गलत राश्ता चुन लिया है और मेरा जीवन तबाह हो गया है. वे कहते हैं की दिल्ली क्या हमने तुम्हें नेता बनने के लिए भेजा था. पंकज जी उनकी बातें सुनकर मुझे समझ में नहीं आता की आखिर मैंने अपराध क्या किया है. क्या हम जैसे लोगो को नेता नहीं बनना चाहियें. क्या किसी राजनीतिक दल में शामिल होकर समाज सेवा को अपना करियर बनाना गलत है. पंकज जी मैं चाहता हूँ की जो कुछ भी मैंने दिल्ली या अन्य जगह से हासिल किया है उसे पुरनिया (bihar) के लोगो में बांटू. पंकज जी आखिर मैं बड़ा पत्रकार होकर भी क्या करता आखिर मुझे वही लोगो को बतलाना पड़ता जो एक आंठवी पास नेता बयाँ देता. मैं राज ठाकरे की बकबक सुनकर आखिर जनता को क्यों बताऊ की उसने बिहारियो के बारे में क्या कहा है. मैं अपने विचार खुद व्यक्त करना चाहता हूँ और loudspeaker थामना चाहता हूँ न की ऐसा loudspeaker बनना चाहता हूँ जिस पर कोई भी बस बयाँ दे कर चलता बने. पंकज जी ऐसा काम दीपक चौरसिया भी कर रहे हैं, मैं ऐसा नहीं करना चाहता मुझे माफ़ कीजियेगा क्योंकि आप भी मीडिया वाले ही हैं." कुनाल कुमार, पुरनिया, बिहार




यह व्यथा मेरे उस मित्र ने फ़ोन पर व्यक्त की है जो कभी पत्रकारिता की क्लास में बिहार की बुराई करने पर पूरी कक्षा में खड़ा होकर विरोध करता था. उसकी तब और अबकी खासियत है की वह खाता भी राजनीती में है और सोता भी राजनीती में है यानि की इतना राजनीतिक है की इसके अलावा कोई और चीज उसके लिए मिटटी के बराबर है. कुनाल ने मेरे साथ ही पत्रकारिता की पढाई की है और थोड़े दिन उसने मीडिया को अपनी सेवाई भी दीं उसके बाद उसने अपनी रूची के मुताबिक राजनीती को अपना लिया.

कुनाल की सारी बातें सुनने के बाद ऐसा महसूस हुआ की यही सबसे बड़ा कारण है जो अच्छे लोग राजनीती में नहीं आतें. एक माँ-बाप अपने बेटे या बिटिया को डॉक्टर, इंजिनियर और मेनेजर बनाने के सपने तो देखतें है वे इस बात पर भी अफ़सोस व्यक्त कर लेतें है की अच्छे राजनेता अब देश में नहीं रहे, लेकिन जब बात आती है की अपने पढ़े लिखे बेटे को राजनीती में जाने दें तो वे सबसे पहले आपत्ति व्यक्त करतें हैं. यह माँ-बाप के नाखुशी का ही नतीजा है की राजनीती में बदमाशों और कम पढ़े लिखे लोग आ रहे हैं.

पत्रकारिता को louspeker कहने पर मैं अपने दोस्त की तरफ से माफ़ी चाहता हूँ क्योंकि वो जिस भावना में बात कर रहा था उसमें ये बातें जायज हैं.

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