गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

मायावती की सरकार में बड़ा अत्याचार है !

माँ-बहन की गाली सुनकर आमतौर पर आंखें तरेरने वाले लोग शादी-विवाह के मौके पर एक से बढ़कर एक गालियाँ सुनकर भी सिर्फ दांत दिखाकर कम चला लेते हैं. मैं नहीं समझता की उनके पास इसके अलावा और कोई दूसरा चारा भी होता होगा. कुछ दिन पहले मुझे भी अपने मामा की बिटिया की शादी में कुछ ऐसा ही करना पड़ा. वहां तिलक के मौके पर लड़के वालो के पक्ष से महिलाएं ऐसी गालियाँ दे रहीं थी की कोई भी सभ्य पुरुष अपने कानो को बाद कर ले. न जाने गालियाँ देने की इस प्रथा को किसने शुरू किया होगा. उस दिन घर की महिलाएं किसी को बक्श दें ऐसा संभव ही नहीं हैं. गालियाँ अगर मीठी जुबान में मिलें तो उसकी बात और ही है. बलिया में भोजपुरी भाषा बोली जाती है और इसी भाषा में मिल रही गालियाँ किसी बंगाली मीठाई से कम नहीं थी.


जब हम लोग लड़के वालों के आंगन में खाना खा रहे थे तो खाने का आनंद गालियों के साथ कुछ और ही था. इस बीच किसी महिला ने तान छेड़ा की मायावती की सरकार में बड़ा अत्याचार है अब गली-गली घुमे मुहनोच्वा हाय सियाराम जी  कहीं. यह गाली सुनकर तो मेरे मुंह का निवाला अन्दर ही नहीं गया और जो हाथ में खाने का कँवर था वो भी हाथ में ही रह गया. मेरी समझ में नहीं आया की इन महिलाओं को ससुरा, साला, भडुआ आदि कहतें-कहतें आखिर मायावती क्यों याद आ गयीं.
काफी research के बाद मेरे ख्याल में आया की नेता का नाम आजकल एक गाली हो गयी है और उन्होंने इसीलियें ऐसा किया होगा.


नोट--- अभी-अभी अपने गृह जनपद बलिया से लौटा हूँ इसलियें लिखने के लिए काफी कुछ है. आगे के अंक में कुछ और मजेदार चीजें होंगी.

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